परमवीर मेजर शैतानसिंह भाटी जिन्होंने मरते दम तक भारत की रक्षा कर वीरगति पाई

राजस्थान की भूमि सन्त , सती और सूरमा की भूमि रहीं हैं। इस गरिमामय धरा के शुरवीरो ने सदैव देश और धर्म की रक्षा के लिए शौर्यपरक बलिदान से राष्ट्रीय चेतना की मशाल को प्रदिप्त रखा है। ऐसे ही एक महान योद्धा भारतीय सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित परमवीर मेजर शैतानसिंह भाटी ने अपने देश की रक्षार्थ बलिदान दे दिया। इस अतुलनीय बलिदान के लिए भारत सरकार ने सन् 1963 में उन्हें सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया।

जन्म और प्रारम्भिक जीवन

जन्म

मेजर शैतानसिंह भाटी का जन्म 1 दिसंबर 1924 को राजस्थान के जोधपुर जिले के बानासर गांव में एक क्षत्रिय परिवार में हुआ। बाल्यकाल से ही क्षत्रियोचित संस्कार एवं परिवार की सैनिक पृष्ठभूमि के कारण बचपन से ही सेना में जाकर देश की सेवा का संकल्प लें चुके थे।

इनके पिता सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल हेमसिंह थे। उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर से सम्मानित किया गया था। क्योंकि प्रथम विश्वयुद्ध में फ्रांस में लड़े थे।

शिक्षा

मेजर शैतानसिंह भाटी ने चौपासनी हाई स्कूल से अपनी मेट्रिक तक की शिक्षा के बाद जसवंत कॉलेज जोधपुर से सन् 1947 में स्नातक की शिक्षा पूरी की। स्कूल में फुटबॉल खिलाड़ी के रुप में अपने कोशल के लिए जानें जाते थे।

सैन्य जीवन

आजादी के बाद जोधपुर रियासत का भारत में विलय हो जाने से उन्हें कुमाऊं रेजिमेंट में स्थानांतरित कर दिया गया। कुमाऊं रेजिमेंट ने नागा हिल्स ऑपरेशन की सफलता के बाद 1961 में गोवा का भारत में सफलता पूर्वक विलय कराने के कारण मेजर पद पर 11 जून 1962 को पदोन्नत किया गया था।

भारत – चीन युद्ध

भारत सरकार के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु का चीन के प्रति नरम रुख के कारण उस समय चीनी सेना ने घुसपैठ कर भारतीय क्षैत्र हड़प लिया था। भारतीय सेना द्वारा घुसपैठ रोकने के लिए सरकार को एक प्रस्ताव भेजा जिसे जवाहर लाल नेहरू ने खारिज कर दिया।

देश में चीनी सेना के घुसपैठ के कारण सार्वजनिक आलोचना होने से नेहरू ने सेना की सलाह के खिलाफ फॉरवर्ड पॉलिसी नामक योजना को मंजूरी दी। जिसमें सीमा क्षैत्र में बहुत छोटी छोटी सैनिक पोस्टों की स्थापना के लिए कहा गया। इस पॉलिसी के कारण भारतीय सेना को खूब नुकसान उठाना पड़ा।

फॉरवर्ड पॉलिसी योजना लागू करना सीधे चीन को फायदा पहुंचाने वाला कदम था। इसका कारण एक तो चीन को भौगोलिक स्थिति का फायदा था दुसरा चीन के हमले के समय छोटी छोटी पोस्टों को बनाना असंगत था। चीन की विशाल सैन्य टुकड़ियों के आगे भारतीय सैन्य टुकड़ियां छोटी होने से सीधा फायदा चीन को मिला।

भारतीय सेना के आगाह के बावजूद नेहरू ने मान लिया था कि चीन हमला नहीं करेगा। लेकिन चीन ने हमला कर दिया। इस प्रकार भारत चीन युद्ध की शुरुआत हो गई। फिर भी नेहरू भारत चीनी भाई भाई का नारा ही देते रहें जिसकी कीमत हमारे बहादुर जवानों को बलिदान देकर चुकानी पड़ी।

रेजांग ला का युद्ध

भारत चीन युद्ध के दौरान कुमाऊं रेजिमेंट की 13 वी बटालियन को चुसुल क्षैत्र मे तैनात किया गया था। यह क्षैत्र दुर्गम है । और समुद्र तल से लगभग 16000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। मेजर शैतानसिंह भाटी की सी कमान रेजांग ला के इस दुर्गम क्षैत्र में थी।

18 नवंबर 1962 को सुबह चीनी सेना ने हमला कर दिया पर भारत की जांबाज उस छोटी सी टुकड़ी ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए चीन के कई सैनिक मार गिराए। चीनी सेना ने मशीनगन, मोर्टार और ग्रेनेड से हमला किया था।

चीनी सेना ने पुनः मोर्टार से हमले करने शुरू कर दिए और लगभग 500 सैनिको ने आगे बढ़ना शुरू किया। चीन के द्वारा सामने से किए गए हमले असफल होने के बाद लगभग 400 सैनिकों ने पीछे से हमला कर दिया। इसके साथ ही आठ वी प्लाटून पर भी मशीन गन और मोर्टार से तार की बाड़ के पीछे से हमला कर दिया।

सातवी प्लाटून पर 120 चीनी सैनिकों ने पीछे से हमला किया लेकिन भारतीय सेना ने तीन इंच मोर्टार के गोले से मुकाबला किया और कई चीनी सैनिकों को मार गिराया। जैसे ही अंतिम बीस सैनिको ने अपनी खाइयों बाहर निकल कर सामने से लड़ाई लड़नी शुरू की लेकिन चीनी सेना के अतिरिक्त जवानों ने घेर लिया।

चीनी सेना को अपेक्षा से अधिक नुकसान उठाना पड़ा। मेजर शैतानसिंह भाटी तीन तरफ से घिर चुके थे। फिर भी हौसला बुलंद था।

अचानक मेजर शैतानसिंह के कंधे में गोलियों का एक ब्रस्ट लगा। अपने जख्म की परवाह किए बिना वह युद्ध का संचालन करते रहें। कंपनी हवलदार मेजर ने उनसे पीछे हटने का आग्रह किया तो उन्होंने स्पष्ट इनकार कर दिया। मौके पर उपस्थित इस ग्रुप की गतिविधियों पर दुश्मन घात लगाए बैठा था।

मेजर शैतानसिंह भाटी को दुसरा ब्रस्ट पेट में लगा तो दो जवानों ने उन्हें कंपनी बेस पर ले जानें का प्रयास किया। पूरा ग्रुप क्रोस फायर में फंस गया। मेजर शैतानसिंह भाटी इस खतरे को भांप गए। उन्होंने घटनास्थल पर मौजूद सैनिक को आदेश दिया कि वे अपनी रक्षा करे। मै इनको आगे बढ़ने से रोकता हूं।

मेजर शैतानसिंह भाटी बुरी तरह घायल होने के बाद भी मशीनगन से चीनी सैनिकों से लड़ते रहे। आखिर मरुधर के इस लाल ने भारत माता के चरणों में अपने प्राणों की आहुति दे दी। इसके बाद बर्फ गिरने से उनकी पार्थिव देह तीन माह बाद प्राप्त हो सकी। इनके पार्थिव शरीर को उनके पैतृक गांव लाया गया और सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।

सर्वोच्च सैन्य सम्मान

मेजर शैतानसिंह भाटी को साहस , रणकोशल , कर्त्तव्य परायणता तथा अपूर्व शौर्य के लिए परमवीर चक्र से (मरणोपरांत ) सम्मानित किया गया।

आखिरी जवान , आखिरी गोली के आदेश पर खरी उतरने वाली ” सी कम्पनी ” को आठ वीरचक्र तथा चार सेना मेडलो से नवाजा गया। और 13 कुमाऊं रेजिमेंट को ” बैटल ऑनर ऑफ रेजांगला ” तथा ” थियेटर ऑनर लद्दाख 1962 ” से अलंकृत किया गया ।

इसे भी पढ़े –

Leave a Comment